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भागवत कालजयी ग्रंथ, जिसमें सभी संशयों की चाबी: स्वामी जगदीशपुरी
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इंदौर. संस्कारों के अभाव में ही मनुष्य पषुतुल्य माना जाता है। भारतीय समाज की यही विषेषता है कि यहां धर्म-संस्कृति की अखंड धारा कभी सूखती नहीं। हमारी संस्कृति पर अनेक हमले हुए, आज भी हो रहे हैं लेकिन भारतीय समाज मुख्य धारा से न कटा, न हटा. यही कारण है कि हमारे तीर्थस्थलों पर आने वाले विदेषी भी यहीं के होकर रह जाते हैंं। भागवत ऐसा कालजयी ग्रंथ है, जिसमें जीवन के सभी संशयों के समाधान की चाबी मौजूद है.
शक्करगढ़, भीलवाड़ा स्थित अमरज्ञान निरंजनी आश्रम के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी जगदीशपुरी महाराज ने मनोरमागंज स्थित गीता भवन पर चातुर्मास अनुष्ठान के अंतर्गत भागवत कथासार एवं प्रवचन के दौरान उक्त दिव्य विचार व्यक्त किये। गीता भवन ट्रस्ट के अध्यक्ष गोपालदास मित्तल, मंत्री राम ऐरन, सत्संग समिति के संयोजक रामविलास राठी, सुश्री प्रमिला नामजोशी आदि ने प्रारंभ में महामंडलेश्वरजी का स्वागत किया। इसके पूर्व महामंडलेश्वरजी के सान्निध्य में विष्णु सहस्त्रनाम से आराधना में भी सैकड़ों भक्त शामिल हुए. गीता भवन में स्वामी जगदीशपुरी महाराज के सान्निध्य में प्रतिदिन प्रात: 8.30 से 9 बजे तक विष्णु सहस्त्रनाम से आराधना, 9 से 10.30 एवं सांय 5 से 6.30 बजे तक भागवत कथासार एवं प्रवचनों की अमृत वर्षा जारी रहेगी.
जितने शोध भारत में उतने कहीं नहीं
महामंडलेश्वरजी ने कहा कि भारत विश्व गुरू रहा है और आज भी जितने धर्मगुरू, धर्मग्रंथ, धर्मशास्त्र और नीति से संबंधित ग्रंथ और शोध कार्य भारत में हुए हैं, उतने कहीं और नहीं हुए हैं. भारत की यही विशेषता उसे दुनिया के अन्य देशों से अलग सम्मान दिलाती है. अपने जीवन को हम कितना सुंदर और व्यवस्थित बना सकते है, इसका व्यवहारिक ज्ञान केवल भागवत में ही मिल सकता है.